Special Report: दुनियाभर के टीकाकरण कार्यक्रमों पर गहराता कोरोना का संकट

Special Report: दुनियाभर के टीकाकरण कार्यक्रमों पर गहराता कोरोना का संकट

नरजिस हुसैन

पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का कहर तीन महीने से भी ज्यादा अर्से से जारी है। अपनेआप में बिल्कुल नए इस वायरस की न तो अब तक कोई दवा ही मेडिकल साइंस में आ पाई है और वैक्सीन बनने में तो लंबा वक्त लगेगा ही। मेडिकल की दुनिया के तमाम बड़ी कोशिशे आज कोरोना का तोड़ ढूंढने में लगी है लेकिन, वहीं करीब-करीब दुनिया के हर देश में बच्चों के टीकाकरण के कार्यक्रम में अड़चने आ रही हैं। इस पेशे से जुड़े विशेषज्ञों ने देशों को आगाह भी किया है कहीं कोरोना को जड़ से खत्म करने का इरादा कोरोना के बाद किसी और तरह की महामारी का सबब न बन जाए। इसमें सबसे ज्यादा डर मीजल्स यानी खसरे का है।

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तो दुनिया में इस वक्त कोरोना सबके दिमागों पर इस कदर हावी हो गया है कि पांच साल के कम उम्र के बच्चों के टीकाकरण के कार्यक्रम पूरी तरह से हाशिए पर आ गए हैं। अगर वक्त रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो दुनिया उन बीमारियों से भी बड़े पैमाने पर सामना करेगी जिनका इलाज उसके पास है लेकिन, कोरोना के बाद क्या इतनी ताकत हममे से किसी भी एक देश के पास सच में बचेगी यह बड़ा सवाल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्युएचओ ने भी हालिया जारी एक बयान में साफतौर से कहा कि कोविड-19 की वजह से बेहद जरूरी टीकाकरण कार्यक्रम पूरी तरह बाधित है। भले ही यह रुकावट कम वक्त के लिए है लेकिन, इसका अंजाम अच्छा नहीं होने वाला है। खासतौर से खसरे के एक देश से दूर दूसरे देश तक फैलने का खतरा है जोकि एक संभावित महामारी की शक्ल भी ले सकता है। हालांकि संगठन की तरफ से जारी बयान में यह भी बताया गया कि संभावित महामारी के हालात इस बात पर निर्भर करते हैं कि टीकाकरण के कार्यक्रम कितनी देर या दिनों के लिए रोके गए है।  

2018 में करीब दुनिया के 86 प्रतिशत नवजात शिशुओं को डिपथीरिया, टेटनस और परटुसिस (डीटीपी3) की तीन खुराक दी जा चुकी हैं। फिलवक्त दुनिया के 20 से 30 लाख बच्चे टीकाकरण की वजह से हर साल गंभीर बीमारियों और अपंगता से होने वाली मौतों से बचे हुए हैं। 2018 तक 129 देशों में 90 फीसद तक डीटीपी3 की वैक्सीन नवजात शिशुओं को दी जा चुकी है। इस कामयाबी के बावजूद आज भी 15 लाख बच्चे सही वक्त पर टीके न पाने की वजह से अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। लेकिन, वक्त पर टीकाकरण ने दुनियाभर में खसरे से मरने वाले बच्चों की मृत्यु दर 73 फीसद तक घटाई है। बहुत बच्चों को लाइफसेविंग टीके भी मिल रहे हैं। इन कोशिशों के बाद भी एक साल से कम उम्र के करीब 19 लाख 40 हजार बच्चों को बेहद जरूरी वैक्सीन भी नहीं मिल पा रही है।

शुरू में संयुक्त राष्ट्र समेत विश्व के जाने-माने हेल्थ विशेषज्ञों ने गरीब और विकासशील देशों को कोरोना वायरस के तेजी से फैलाव को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर किए जा रहे टीकाकरण की रफ्तार को कम करने का सुझाव दिया था। लेकिन, अब इस बात का ध्यान रखते हुए अलग-अलग देशों ने जब अपने राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम को रोकने का फैसला किया तो नतीजतन आज 100 करोड़ बच्चों की जिंदगी दांव पर लगी हुई है। अगर टीकाकरण कार्यक्रम में और देरी की गई तो बच्चों में खसरा होने का खतरा बढ़ता ही जाएगा। हालांकि, दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका कोविड-19 से पहले ही कई ऐसी बीमारियों के फैलाव से जूझ रहा था जिसका इलाज या वैक्सीन उसके पास मौजूद है। दरअसल, वहां अलग-अलग बीमारियों की वैक्सीन को लेकर जो अफवाहों का माहौल गर्म था उसके बाद बच्चों को टीका लगवाने की दर में खासी गिरावट दर्ज की गई। अप्रैल, 2019 में सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) ने देश में खसरे से पीड़ित बच्चों की तादाद सन 2000 के बाद सबसे ज्यादा बताई थी हालांकि, इसका वैक्सीन अमेरिका के पास मौजूद है।

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बहरहाल, मीजेल्स एंड रुबेला इनीशिएटिव के मुताबिक 24 कम अर्थव्यवस्था वाले देश जिनमें मेक्सिको, नाइजीरिया और कंबोडिया शामिल है वहां टीकाकरण के कार्यक्रम पूरी तरह टाल दिए गए हैं। और 37 देशों के बच्चों पर भी खसरे का साया गहराता जा रहा है इनमें अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्वी महाद्वीपों के देश शामिल हैं। कुछेक अमीर देश तो प्राइवेट हेल्थ सेक्टर से अपने बच्चों को टीके लगवा रहे हैं लेकिन, एक बड़ा तबका अभी भी इन टीकों की पहुंच से दूर है। टीकाकरण के इन कार्यक्रमों को कुछ देर के लिए रोका तो जा सकता है लेकिन लंबे वक्त तक पांबदी अनचाहे नतीजे ही देगी ये सबको समझने की जरूरत है। गरीब और विकासशील देशों में तो लचर हेल्थ सिस्टम होने की वजह से टीकाकरण के रिकार्ड ही रखने मुश्किल हो रहे हैं।

सोशल डिस्टैनसिंग यानी सामाजिक दूरी जो कोरोना का फिलहाल इलाज मानी जा रही है की वजह से सभी देशों के डॉक्टर, नर्से और सहायककर्मी पूरी तरह से कोरोना के काम में झोंक दिए गए हैं। अब अगर मां-बाप चाहें भी तो बच्चों को कहां ले जाकर टीके लगवाएं क्योंकि अस्पतालों या क्लिनिकों में तो मेडिकल कर्मी टीकाकरण का काम ही नहीं कर रहे। इस वक्त मेडिकल का सामान, दवाइयां, टीके वगैरह भी मिलना टेड़ी खीर है ट्रांसपोर्ट में आई रुकावट के चलते लोगों को मेडिकल के छोटे-बड़े सामान भी नहीं मिल पा रहे। युनिसेफ को अब सबसे ज्यादा चिंता है कोरोना वायरस के अलावा अफगानिस्तान, कांगो, सोमालिया, फिलीपींस, सीरिया और दक्षिण सूडान में खसरे, क्लोलेरा और पोलियों के फैलाव की।

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कोरोनावायरस के डर से जिस तरह सरकारों ने टीकाकरण के कार्यक्रमों को रोका है उसे युनिसेफ ने अब बहाल करने की अपील तो की है लेकिन, पूरी योजना के साथ। ये वैक्सीन उन्हीं बच्चों को दी जाएगी जिनकी खुराक की तारीखे कोरोना के चलते रोक दी गई थी। इनमें सबसे पहले गरीब देशों या वो बच्चे जिनको फिलहाल वैक्सीन की सख्त जरूरत है शामिल होने चाहिए। लेकिन, अगर कहीं ऐसा अब भी न हो पाया तो डर है कि कोरोना से बचने के चलते जब तक दुनिया एक महामारी से उबरे तो वहीं कहीं दूसरी महामारी के मुहाने पर खुद को खड़ा न पाए।

 

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